Wednesday 24 April 2013

एक लंगोटी वारौ

एक लंगोटी वारौ

महात्मा गांधी एक लोकोत्तर पुरुष थे जिनके स्वावलंबन, चरखा, स्वदेशी वस्तुओं का व्यवहार, सेवा, अभय, निराभिमानता, समता,अपरिग्रह, अनासक्ति, सत्य  और अहिंसा के मंत्रों से समूचा देश और विश्व मानवता तरंगित है। गांधी पर देश के अवाम को असंदिग्ध भरोसा था उन्होंने जब भी जिन रास्तों की ओर इशारा किया देश के करोड़ों-करोड़जन उन राहें पर निर्भय निकल पड़े। महात्मा गांधी स्वाधीनता संघर्ष के ऐतिहासिक तथा निर्णायक दौर के अप्रतिम नायक रहे हैं और साथ ही साथ भारतीय लोकतंत्र और स्वराज के रचनाकार भी। इसीलिए कोई आधी सदी गुजर जाने के बावजूद वे लोक मानस से विस्मृत नहीं नहीं हुए हैं बल्कि समय बीतने के साथ-साथ वे संभवतः पहिले से भी अधिक संदेह और आत्मीय रूप में प्रकट हो रहे हैं 

महात्मा गांधी स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान अनेक कवि, लेखकों, विचारकों के लिए प्रेरणास्पद रहे है। लोक कवि श्री माधव शुक्ल मनोज भी गांधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन के एक सिपाही रहे हैं और बुन्देलखण्ड के गांवों में गांधी जी के सिद्धान्तों और संदेशों को पहुंचाने का प्रयास करते रहे हैं। एक लंगोटी वारौ कविता पुस्तक श्री माधव शुक्ल मनोज की चैपालों, मंडलियों, सौबतों में सुनी-गुनी कविताओं का संकलन है।

आशा है कि श्री माधव शुक्ल मनोज की कविताओं के माध्यम से गांधी जी की महिमा और उनके मंत्रों का पुनसर्मरण कर पाने में मदद मिलेगी। 

श्री राम तिवारी 
संचालक
स्वराज संस्थान संचालनालय
भोपाल
2001 






मैनें किशोर अवस्था में गीत-कविताएं लिखना प्रारंभ की। सन् 1942 में मैंने भूमिगत गांधी जी के सत्याग्रह-आन्दोलन में भाग लिया। दुर्भाग्य कि मैं बन्दी नहीं बनाया गया। उसी समय मैंने लोकबद्ध शैली में बुन्देली गीत लिखे। जिन्हें समयानुसार कवि सम्मेलनों के मंच पर गाया। एक शिक्षक होकर उन्हें गांव की चैपाल मंे भी गुंजाया। ग्रामीण लोगों की रामायण मंडलियों-सौबतों में बैठकर रामकथा, भजन, कीर्तन के साथ इन गीतों को स्वरबद्ध सुनाते हुए गांधी जी के सिद्धान्तों, उनकी जनसेवी भावनाओं एवं देश भक्ति को बुन्देलखण्ड के गांव में उजागर करता रहा हूं।

माधव शुक्ल मनोज




कविताऐ 





गांधी जू के जे बंदरा।।

गांधी जी के जे बरा।
आंख-कान मूंदे दो देखो
एक रखे-मों पे अंगुरि।
   सतपथकी जे बातें भैया
   इन्हें नें तुम मारो पथरा
   गांधी जू के जे बंदरा।।

अच्छो देखो-सुनो भी अच्छो
कड़वी बानी बोलौ ने।
   शीतल-शान्त करो मना सबकौ-
   रखो ने कोउ पै अंगरा।
   गांधी जू के जे बंदरा।।

सत्य अहिंसा-समता के जो
तीन तिलंगा बैठे हैं
   समझो इन्हें और समझाओ
   बनो नें मैं-मैं के बुकरा।
   गांधी जू के जे बंदरा।।

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