धुनकी रूई पै पौवा
बुन्देली कविता संग्रहसूखे ककरी कौ जौआ,
छाती में उगे अकौआ,
थ्सर के ऊपर आज विपद को
बोले कारो-कौआ।
ऐसो लगे समय नें धर दओ
धुनकी रूई पै पौआ।
1 कितनौ गज इंदियारो
कितनौ गज इंदियारो
चलो, चलें-नापें
पांव धरें सदकें
ऐरो नें होय।
मचस की डिबिया की
सीकें-उजयारें।
धुटनों खौं मोड़-
रात कांखरी में नापें
कितनों गज इंदियारो, चलौ चलें नापें।
टुकुर-मुकुर हेरें
चुप्पी खों साध।
कान बांध गमछा से
छाती खों ठांक।
गुरसी में आग बार
जड़कारो-तापें
कितनों गज इंदियारो, चलो चलें नापें।
कुंदें और फांदें
मारें-छलांग।
धरती खों रौंदें
चढ़ जावें पहाड़।
सांसें उसकरें
दहकावें
मों में की भापें।
कितनौं गज इंदियारो, चलो, चलें-नापें।
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