Sunday 14 April 2013

धुनकी रूई पै पौवा-1992 बुन्देली कवितायें

धुनकी रूई पै पौवा

बुन्देली कविता संग्रह


सूखे ककरी कौ जौआ,
छाती में उगे अकौआ,
थ्सर के ऊपर आज विपद को
बोले कारो-कौआ।
ऐसो लगे समय नें धर दओ
धुनकी रूई पै पौआ।



 1 कितनौ गज इंदियारो

कितनौ गज इंदियारो
चलो, चलें-नापें
पांव धरें सदकें
ऐरो नें होय।
मचस की डिबिया की
सीकें-उजयारें।
         धुटनों खौं मोड़-
         रात कांखरी में नापें
कितनों गज इंदियारो, चलौ चलें नापें।
टुकुर-मुकुर हेरें
चुप्पी खों साध।
कान बांध गमछा से
छाती खों ठांक।
         गुरसी में आग बार
         जड़कारो-तापें
कितनों गज इंदियारो, चलो चलें नापें।
कुंदें और फांदें
मारें-छलांग।
धरती खों रौंदें
चढ़ जावें पहाड़।
         सांसें उसकरें
         दहकावें
मों में की भापें।
कितनौं गज  इंदियारो, चलो, चलें-नापें।

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