Friday 29 March 2013

देश का गौरव

माधव शुक्ल मनोज
देश का गौरव रहे  माधव शुक्ल मनोज हिन्दी और बुन्देली के सुपरिचित कवि-लेखक और महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है उनकी ग्राम्य जीवन को कविता मै व्यक्त करने की शैली अद्वतीय है. लोक कलाओं में गहरी अभिरुचि रही. शिक्षा के क्षेत्र में गाँधी जी से प्रभावित हुये और शिक्षा मै नवीन प्रयोग और ग्राम्य शिक्षा की विशिष्ट योजनाओं के सृजन के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया। बुन्देलखण्ड के लोक नृत्य राई पर शोधात्मक कार्य लेखन किया और इनके शोध को मध्य प्रदेश शासन ने मोनोग्राफ के रूप मै प्रकाशित किया। लोक संस्कृति अद्दयेत्ता के रूप मै  म.प्र. आदिवासी लोक कला परिषद के मनोनीत कार्यकारिणी समिति के पूर्व सदस्य रहे। बचपन मै ही सन् 1942 के स्वंतत्रता संग्राम में सक्रिय ( भूमिगत ) भाग लिया और देश की सेवा की। आपने  ‘विन्यास’ मासिक पत्रिका एवं ‘ सोनार बंगला देश ’ कविता संकलन, ‘ कला चर्या ’ मासिक पत्रिका का  संपादन किया । आकाशवाणी भोपाल 1953 से सम्बद्ध स्थायी अनुबंधित कवि और छतरपुर आकाशवाणी के मनोनीत कार्यक्रम सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य बने, प्रगतिशील लेखक संघ सागर इकाई के पूर्व अध्यक्ष और दूरदर्शन एवं महत्वपूर्ण बुंदेली कला-साहित्य संस्थाओं से सम्बद्ध रहकर कार्य किया। राष्ट्रीय एकता यात्रा दल सागर के संयोजक रहते हुए गांवों में जाकर सामाजिक सदभाव जगाने का कार्य मै कविता को माध्यम बनाया और जाग्रति फैलाई ।

देष-प्रदेष और आंचलिक साहित्यक पत्र-पत्रिकाओं-संग्रहों में समयानुसार हजारों प्रकाशित रचनायें उनके साहित्यक योगदान की साक्षी हैं। बुन्देली रचना के स्तर पर उन्हें ईसुरी के बाद ख्यालीराम के बाद का कवि माना गया। उनके बुन्देली में किए गये नवीन प्रयोगों से बुन्देली साहित्य जगत में नये सौपान बने हैं। डा. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के बी.ए. फाईनल बुंदेली पाठ्यक्रम में उन्हे पढ़ाया जाता है  और अब वे देश के हिन्दी और बुन्देली साहित्य के शीर्ष साहित्यकारों में शुमार हैं। विगत वर्षो मै उनके द्वारा सृजित ग्रन्थ अ
प्रकाशित है। प्रकाशन पश्चात उनका साहित्य मूल्यांकनकर्ताओं के लिए एक नये युग के सूत्रपात जैसा होगा। योजना पर कार्य अंतिम चरणों में है।

माधव शुक्ल मनोज को अनेक अभिनंदन, पुरस्कार एवं सम्मान से सम्मानित किया गया..

1984 शिक्षकों का राष्ट्रीय सम्मान, 

1984 मध्यप्रदेश  शासन का शिक्षक पुरस्कार,1992 मध्यप्रदेश  साहित्य परिषद् भोपाल द्वारा ‘ ईसुरी ’ पुरस्कार।,1995 बुन्देलखण्ड अकादमी छतरपुर द्वारा ‘ श्री प्रवणानन्द ’ पुरस्कार।,2000 मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा ‘अक्षर आदित्य’ सम्मान, भोपाल,2000 अभिनव कला परिषद भोपाल द्वारा ‘ अभिनव शब्द शिल्पी ’ की उपाधि से सम्मानित। डा. सर हरिसिंह गौर विष्वविद्यालय के बी.ए. फाईनल बुंदेली पाठ्यक्रम में शमिल हुए

अब तक
प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख कृतियां...हिन्दी कविता में 1953 सिकता कण/1956  भोर के साथी/ 1960 माटी के बोल (बुन्देली),1965 एक नदी कण्ठी-सी /1992 नीला बिरछा/1992 धुनकी रुई पे पौआ ( बुन्देली ), 1992 टूटे हुए लोगों के नगर में /1992 जिन्दगी चन्दन बोती है, 1992 षड़यंत्रों के हाथ होते हैं-कई हजार /1997 जब रास्ता चौराहा पहन लेता है, 2000 मैं तुम सब/ 2001 एक लंगोटी बारो गांधी जी पर लोक शैली में गीत ( बुन्देली और हिन्दी )

उन्होंने 1994 में मध्यप्रदेश संस्कृत अकादेमी, भाशान्तर कवि समवाय द्वारा प्रकाशित  काव्य संग्रह में संस्कृत में अनुवाद किया। हिन्दी लेखन डायरी का वृहत लेखन और लोक संस्कृति के संरक्षण और दस्तावेजीकरण के अनेक कार्य किए।

उनकी गद्य पुस्तकों में..राजा हरदौल बुन्देला ( बुन्देली नाटक ), बुन्देलखण्ड के संस्कार गीत (आदिवासी लोक कला परिषद्  भोपाल द्वारा प्रकाशित हुए और एक अध्यापक की डायरी मध्यप्रदेश संदेश में धारावाहिक प्रकाशित की गई।
लोककलाओं के अनेक रूपों पर कार्य करते हुए उन्होंने लोक संगीत रूपक में ‘बेला नटनी’ (बुन्देली संगीत रूपक लिखा जो आकाषवाणी छतरपुर से प्रसारित होता रहता है। बुंदेली संगीत रूपक ‘नौरता’ आदिवासी लोक कला परिशद्, भोपाल द्वारा
प्रकाशित किया गया।

बुन्देलखण्ड के लोक नृत्य राई पर शोध और दस्तावेजीकरण किया राई का सामाजिक भूमि पर यशोगान करते हुए राई  को देश  और दुनिया के मंच पर भेजने में महती भूमिका निबाही उनके ही इस प्रयास से राई और राई करने वाली बेडिया जाति के जीवन स्तर को उंचा उठाने अब शIसन कृत संकल्पित है। उनके राई मानोग्राफ में राई को कला का दर्जा दिया गया जो अब राई के प्रति सम्मान पैदा करता है। मोनोग्राफ आदिवासी लोक कला परिषद द्वारा
प्रकाशित किया गया।

 'मनोज' जी  का व्यक्तित्व बहुआयामी है। वे एक सच्चे कवि, देश-भक्त, धर्म की धुरी पर जीवन जीने वाले और परम सात्विक जीवन जीने वाले पुंज थे। उनका जीवन सतत् कार्य में संलग्न रहने और अपने अंचल के आसपास के अंतिम आदमी की मनोदशI को समझने में ही बीता...वे ग्राम्य जीवन के अन्वेशी और ग्राम्य की सरलता और सहजता के प्रेमी और उसकी सौन्दर्य दशा का हृदयस्पशी चित्रण के शब्द चयन में महारथी थे।

 देश -प्रदेश  और आंचलिक साहित्यक पत्र-पत्रिकाओं-संग्रहों में समयानुसार हजारों प्रकाशित रचनायें उनके साहित्यक योगदान की साक्षी हैं। उन्हें ईसुरी के बाद ख्यालीराम के बाद का कवि माना गया। उनके बुन्देली में किए गये नवीन प्रयोगों से बुन्देली साहित्य जगत में नये सौपान बने हैं।  
 
मनोज जी ने हमेशा कहा कि अब देश  को कवियों की जरूरत नहीं मूल्यांकन कर्ताओं, समीक्षको की जरूरत है। अब तक जो लिखा गया व्यक्त किया गया , उसका मूल्यांकन होना चाहिए। वे इस नयी दुनिया को यही संदेश देना चाहते थे कि संवेदनशीलता मनुष्यता का सर्वाधिक शेष्ट गुण है। इसे बचाने की भरसक कोशिश करनी चाहिए। वे कहते कि उन्हें अपने मूल्यांकन की सदैव प्रतीक्षा रहेगी।

वे कहते थे कि मुझे मोक्ष नहीं चाहिए..यदि ईश्वर प्रसन्न हो तो मैं तो फिर उन्हीं गांवों की पगडंडियों, नदी और नालों की हवाओं, सुरहन गायों की आवाजों, बरेदियों और किसानों के स्वर के बीच फिर-फिर आना चाहूँगा । वे कहते मेरा तो स्वर्ग यही है  और रहेगा भी ।

उन्होंने अपनी जीवन के प्रत्येक मिनिट को लेखन और सुर्जन  में ही बिताया और तो और जब बीमारी से उठते तब वे कहते कि एक कविता तो और लिख लूं पता नहीं यही मेरी अंतिम कविता हो तो में जितनी सांसें जीउं उतना सृजन तो करता ही चलू। जब तक शरीर है मैं लिखता ही रहूंगा...लिखता ही रहूंगा और मरने के बाद अपनी ही किताबों में रचनाओं में समा जाउंगा। जब लोग मुझे पढ़ेगे तो में उनकी आंखो में.. उनके भावों में, उनके उच्चारित 'शब्दों में फिर फिर जी लूंगा...इस तरह अनंत्ता की गोद में में सदा जीवंत रहूंगा...

जीवन के अंतिम 12 साल रायपुर में रहें और वहीं वे वे 6 माह अस्वस्थ रहे और 82 साल की आयू पूरी कर अपने जन्म दिन के अगले ही दिन 2 अक्टूबर 2011 को विश्रांति में चले गये...तीन महिने पहिले से ही वे अपने जाने की तिथि को व्यक्त कर रहे थे और देवी से प्रार्थना करते थे कि इस बार में आपको आमंत्रित नहीं करूंगा बस मैं आपके साथ ही चलूंगा...तो पंचमी और षष्टी के दिन दोपहर तीन बजे उन्होंने कहा कि 'बस मुझे जाना है।' अब मै चला...मेरा समय हो गया है... मुझे जल्दी है... अब जाता हूं... उन्होंने 9 गहरी सांसें ली अपने हाथों से अपने अदृष्य हृदय कमल को जैसे खोला और एक लम्बी स्वास के साथ अपने अज्ञात लोक की ओर चले गये...जहां से आये अब उसी विश्रांति में..



Sunday 24 March 2013

माधव शुक्ल मनोज एकल फोटो संग्रह-

madhav shukla mano

माधव शुक्ल मनोज के अपने लेखन के आरंभ से उनके फोटो पत्र पत्रिकाओं में कविता के साथ छपने लगे. उस समय कवियों में अपनी कविता के साथ अपनी फोटो छपवाना न केवल एक शौक बल्कि एक अनिवार्यता मानी जाने लगी. और उस युग में कविता के साथ कवि की छवि कविता को और भी आकर्षण का दर्जा देने लगी. उस दौरान से मनोज जी के अब तक सैकड़ों की संख्या में फोटो जो संग्रहित हैं उन्हें इस ब्लाग पर देख और लिया जा सकता है.
आगामी समय में इसमें फोटो की संख्या में सतत् वृ़िद्ध की जाती रहेगी....
अनुरोध है कि यदि फोटो उपयोग करें तो कवि नाम और ब्लाग का नाम अवश्य उल्लेखित करें...
द्वारा-
आगत शुक्ल
सी@13,सेक्टर 1,अवन्ति विहार, रायपुर, सी.जी. भारत,
9630234505/8223955709


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  द्वारा-
आगत शुक्ल
सी@13,सेक्टर 1,अवन्ति विहार, रायपुर, सी.जी. भारत,
9630234505/8223955709


Thursday 21 March 2013

सृजन-माधव शुक्ल मनोज

manoj
माधव शुक्ल मनोज
1930-2011

बुन्देली एवं हिन्दी के सुपरिचित कवि-लेखक। लोक कलाओं में गहरी अभिरुचि। राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक। बुन्देलखण्ड के लोक नृत्य राई पर शोधात्मक कार्य लेखन। प्रकाशित मोनोग्राफ।म.प्र. आदिवासी लोक कला परिषद के मनोनीत कार्यकारिणी समिति के पूर्व सदस्य। सन् 1942 के स्वंतत्रता संग्राम में सक्रिय ( भूमिगत ) भाग लिया।‘विन्यास’ मासिक पत्रिका एवं ‘ सोनार बंगला देश ’ कविता संकलन, ‘ कला चर्या ’ मासिक पत्रिका के संपादक।आकाशवाणी भोपाल 1953 से सम्बद्ध स्थायी अनुबंधित कवि। छतरपुर आकाशवाणी के मनोनीत कार्यक्रम सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य।

प्रगतिशील लेखक संघ सागर इकाई के पूर्व अध्यक्ष। दूरदर्शन एवं महत्वपूर्ण बुंदेली कला-साहित्य संस्थाओं से सम्बद्ध। राष्ट्रीय एकता यात्रा दल सागर के संयोजक। साहित्यक पत्र-पत्रिकाओं-संग्रहों में समयानुसार प्रकाशित रचनायें। डा. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के बी.ए. फाईनल बुंदेली पाठ्यक्रम में शामिल ।

पुरस्कार एवं सम्मानः

1984    शिक्षकों का राष्ट्रीय सम्मान
1984    मध्यप्रदेश शासन का शिक्षक पुरस्कार
1992    मध्यप्रदेश साहित्य परिषद् भोपाल द्वारा ‘ ईसुरी ’ पुरस्कार।
1995    बुन्देलखण्ड अकादमी छतरपुर द्वारा ‘ श्री प्रवणानन्द ’ पुरस्कार।
2000    मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा ‘अक्षर आदित्य’ सम्मान, भोपाल
2000    अभिनव कला परिषद भोपाल द्वारा ‘ अभिनव शब्द शिल्पी ’ की उपाधि से सम्मानित।

प्रमुख कृतियां

हिन्दी कविता
1953    सिकता कण   
1956    भोर के साथी
1960    माटी के बोल       (बुन्देली)
1965    एक नदी कण्ठी-सी
1992    नीला बिरछा
1992    धुनकी रुई पे पौआ ( बुन्देली )
1992    टूटे हुए लोगों के नगर में
1992    जिन्दगी चन्दन बोती है
1992    षड़यंत्रों के हाथ होते हैं-कई हजार
1997    जब रास्ता चैराहा पहन लेता है
2000    मैं तुम सब

2001    एक लंगोटी बारो गांधी जी पर लोक शैली में गीत ( बुन्देली और हिन्दी )

अनुवाद
1994    मध्यप्रदेश संस्कृत अकादेमी, भाषान्तर कवि समवाय द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह में संस्कृत में        अनुवाद

हिन्दी लेखन डायरी

लोक संस्कृति

गद्य पुस्तकें
             राजा हरदौल बुन्देला                             ( बुन्देली नाटक )
             बुन्देलखण्ड के संस्कार गीत                  ( आदिवासी लोक कला परिषद्, भोपाल द्वारा प्रकाशित)
             एक अध्यापक की डायरी।                    ( मध्यप्रदेश संदेश में धारावाहिक प्रकाशित )

लोक संगीत रूपक
           बेला नटनी     ( बुन्देली संगीत रूपक )    ( आकाशवाणी छतरपुर से प्रसारित )
           नौरता            ( बुन्देली संगीत रूपक )     ( आदिवासी लोक कला परिषद्, भोपाल द्वारा प्रकाशित)

         बुन्देलखण्ड के लोक नृत्य राई पर सर्वक्षण-मानोग्राफ  ( आदिवासी लोक कला परिषद द्वारा प्रकाशन )

माधव शुक्ल मनोज स्मृति, ब्लाग आरंभ

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जनसूचनार्थ

माधव शुक्ल मनोज देश के हिन्दी और बुन्देली के अग्रणी कवि और साहित्यकार थे। उनकी इच्छा थी कि उनकी सृजन सामग्री पाठकों, अध्ययेताओं,छात्रों तथा संस्कृतिकर्मियों तक आसानी से उपलब्ध हो। उनकी इस अभिलाषा को पूर्ण करने के लिए ब्लाग आरंभ किया जा रहा है जिसमें उनकी प्रकाशित तथा अप्रकाशित कृतियां, लेखन सामग्री, आडियो-वीडियो, फोटो तथा अन्य प्रकार की विविध सामग्री इस पर उपलब्ध होगी। मेरी जानकारी में इस तरह की सामग्री का अधिकार मेरे पास है। फिर भी किसी अन्य को सामग्री के संबंध में कोई अनुरोध-अवरोध हो तो जानकारी प्राप्त होने पर विचार कर कार्यवाही की जावेगी।

आगत शुक्ल
सी@13 सेक्टर 1, अवन्ति विहार, रायपुर
9630234505 एवं 8223955709