Wednesday 2 October 2013

मध्यप्रदेश के आधुनिक साहित्यकार -माधव शुक्ल मनोज


डॉ. ब्रजभूषण सिंह आदर्श ने मध्यप्रदेश के आधुनिक साहित्यकारों की एक सूचीबद्ध विशलेषण (भारतेन्दु युग से आधुनिक युग तक का ) किया। उसमें पेज 305 पर  माधवशुक्ल मनोज मो आधुनिक युग का कवि मानते हुए उनके साहित्य यात्रा और उनका परिचय अंकित किया है।
जीवन के अंधड़ में आस्था का दीप जलाने वाले तरूण कवि मनोज का जन्म 1 अक्टूबर 1930 को हुआ था। निद्वन्द जी के शब्दों में ‘संघर्षों में पले और बढ़े-चाह होते हुए भी उच्च शिक्षा न प्राप्त कर सके और विवशता के साथ समझौता कर प्राथमिक शाला में शिक्षक हो गए। पढ़ने का संतोष न मिला तो पढ़ाने का बाना पहिना, बेबसी की लोरियां सुनी तो आस्था के गीत गाये और प्रकृति की गोद में जा लेटे।‘
मनोज ने काव्य में ग्रामीण जीवन को जीवन्त बनाया है। ग्राम्य जीवन और ग्राम्य प्रकृति को उन्होंने अत्यन्त निकट से देखा है और गहरी अनुभूति के साथ उन्हें शब्द चित्रों में उतारा है। बुन्देलखण्ड के गांवों को उन्होंने वाणी दी हे। उनमें अनुभूति की ईमानदारी भी है और कहने की सफाई भी। उनके गीत अनुभूतियों की सहजता के कारण ही सरस बन पड़े हैं।
मनोज जी के बोल सशक्त हैं। इसका एक मूल कारण संभवतः यह है कि वे एक ग्रामशाला में अध्यापक हैं और स्वयं ग्रामवासी हैं। ग्रामीण जीवन को उन्होंने कल्पना की आंखों से नहीं देखा है वरन उसमें ही डूब कर उनकी अनुभूति ने अभिव्यक्ति पाई है। उनके काव्य की विशिष्टता ग्रामीण जीवन एवं प्रकृति की विस्तृत छवियां हैं जो उनके दिल और दिमाग दोनों पर गहरी उतर चुकी हैं।
यही कारण है कि वे आस्था के कवि हैं। यथार्थ को उन्होंने विस्मृत नहीं किया किन्तु नये जागरण के प्रति उनकी दृढ़ आस्था ने प्रगतिवादी कवि की निषेघात्मक धारणा का आवरण भी दूर रखा है। कवि को दुख-दैन्य-ग्रसित कृषकों और मजदूरों के आत्म गौरव और विश्वास पर अटूट श्रृ़द्धा है और वह उन्हें खंडित नहीं करना चाहता।
लोकगीत कवि की रचनाओं के संबल हैं और उनकी अधिकांश रचनायें उनके प्रभावित हैं। डॉ. रामरतन भटनागर का कथन है, भाषा की जनपदीय झलकियां हमें ग्राम की आत्मा के सम्पर्क में ले आती हैं और लोकगीतों की धुनें हमें एक बार भुला सा देती हैं। ‘कह सकते हैं कि कवि ने बुन्देलखण्डी लोकगीतों से आना तादात्म्य स्थापित कर, कविता के माध्यम से गीतात्मक भावधारा को लिरिकल बनाया है। उनकी रचना भाषा के दर्शन, नाद सौन्दर्य, लयात्मक गति और इन्द्रधनुषी भाव रूपों के कारण चटकदार बन पड़ी हैं।’
मनोज जी के चार काव्य संग्रह‘ सिकता कण‘, ‘भोर के साथी‘, ‘माटी के बाल तथा ‘एक नदी कंठी सी‘ प्रकाशित हो चुकी है। ‘एक नदी कंठी सी‘ में नर्ह कविता का नया परिवेश दृष्टव्य है।