शिक्षकीय जीवन वृत्त-माधव शुक्ल मनोज
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माधव शुक्ल मनोज |
कार्य के रंग में रंगकर एक रंग हो जाने का आनंद और उसके अनुभव का वर्णन में किन शब्दों में करूं? उस आलौकिक आनंद का वर्णन में सिर्फ एक ही वाक्य में बतला सकता हूं कि जब भी कभी में अपने ही अंदर महसूस करता हूं तो मुझे लगता है कि मैं अपने आप में एक विद्यालय हूं। एक कवि साहित्यकार होने के नाते, फुरसत के समय एकांत में कवितायें लिखता, उन्हें गुनगुनाकर स्वर देता और गांव वालों को सुना देता। घनघोर मूसलाधार बारिश को देखकर वर्षा गीतों की रचना करना, बाढ़ से जगमगाती हुई जल से भरी नदी, खेतों में निकलती हुई उसकी नहरों की कोमल कल्पना करना, कीचड़ से भरी हुई राहों पगडंडियों पर चलने की राम कहानी गढ़ना। टीलों पहाड़ों की कटीली झाड़ियों में कांटों की चुभन की अनुभूतियों को आत्मसात करना, उन्हें शब्द देकर अपनी भावनाओं को कविताओं के माध्यम से व्यक्त करने का सुअवसर मुझे इसी ग्रामीण अंचल से प्राप्त हुआ था।
निरंतर ...
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