Friday 5 April 2013

एक नदी कण्ठी सी-1965 समीक्षा


एक नदी कण्ठी सी (कविता संग्रह)

एक प्रतिक्रिया

मनोज को युवा रचनाकार चन्द्रशेखर व्यास का पत्र

पत्रिका-धूप, पेज न. 16, समीक्षक-चन्द्रशेखर व्यास




बहुत दिनों तक यह प्रश्न मुझे परेशान करता रहा कि अच्छी रचना अपने रचियता को अमर कैसे बनाती है प्रश्न का उचित समाधान मुझे तब मिला जब आपकी रचना एक नदी कण्ठी सी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
किसी भी लेखक की रचनाए उसके व्यक्तित्व जीने एवं विचारने के ढंग का स्पष्ट संकेत देती हैं और यदि रचनाओं पर चिंतन किया जाए तो लेखक की जीवनी प्याज की पर्तों की तरह खुलती चली जाती है इस पुस्तक से आपके बारे में जितना जान सका हूं लिख रहा हूं आपसे अनुरोध है  क़ि इस बारे में अपनी राय अवश्य दें।
पूरी पुस्तक संत्रास यादो की यातना और उदासी मुझे कुछ एंसे व्यक्त होने लगी-

हम पत्तियों की छांव
बालों में लपेट
चेहरों में भरे
परछाईयों में सूख जाते हैं।


पत्तियों की छांव पुरानी यादों के रूप् में चेहरे के झुर्रियों से अपनी एकरूपता स्थापित करे या करे पर परछाईयों में सूखने का भाव कुछ ऐसा लगा जैसे टूसू छाया में सुखाया जा रहा हो चटखती धूप में खिलने वाला एक मर्द फूल जो छाया में सूख कर औषधि बन जाता है ऐसी कई और औषधियां हैं जो छाया में सुखाये जाने पर अपने गुण के पीछे दवा को जितनी अधिक यातनाएं सहनी पड़ती हैं वह यातना एक अन्य कविता में सहज मौन के साथ व्यक्त हुई है ?

फट गया जब दर्द
अपनी आह से ही
सी रए हम
और क्या यह चुपचाप सूखने की प्रतिक्रिया नही
मैं अपने कक्ष में
झिलमिलाता जल रहा हूं।


पर यातना इस घुटन उदासी के संदर्भ में इसी संग्रह मंे छिपे हुए हैं पर उन्हें खोजने के लिए चिन्तन आवश्यक है

मेरे दूध बताशों के सपनों पर
खट्टी बूंदे टपक गईं
या फिर
मैं उजाले के किनारे
अपनी परछाईयों में
तुम्हारा नाम लिखना चाहता हूं


और यहां कवि का मन उस तुम से जुड़ जाता है जो अदृश्य होते हुए भी हर समय पास है हस तुम को स्वागत की कल्पना

तुम्हारे इंद्र धनुषी माथे पर
अपने वसन्त की धूल का तिलक
लगाने की सोच रहा हूं
और स्नेह आमंत्रण-
ओ मेरी सोन चिड़या
मेरे पास आ-


पर ‘ तुम, के अर्थ यहां तक ही नहीं हैं, वे विभिन्न संदर्भों में भिन्न र्थ और साकार पाते हैं आपका मन कितने निकट है तुम इस तुम के निम्न पक्तियों से ही स्पष्ट होता है

अपने आंसू की ओस
आंख से
कितने वर्ष रोयेगी
मेरी सोनजुही ?


यही हमदर्दी जहां दूसरे कवियों को भावनाओं में बहा ले जाती है वहां आप सहज ही भावनात्मक एकीकरण से अलग हट कर कह देते हैं-

तुमने
नीबू का बिरछा, रोपा था।


और यहा वर्तमान विलगाव भी स्पष्ट हो जाता है वह भी पूर्ण ईमानदारी के साथ-

एक नजर में दिख जाता है
हम हम में हैं
तुम तुम में हैं


इसी तुम के साथ आपकी श्रंगारिकता एवं आध्यात्मिकता एक जैसे शिल्प को लेती हुई व्यक्त हो गई है।
अपने प्रकृति वर्ण के बारे में कुछ कहना तो अपने भाषाधिकार को चुनौति देना है प्रकृति कहीं उपमेय है और कहीं उपमान


अधखुली मुदी कलियों को चीटियां
संघ-संघ
तने कुतर रहीं।
और
जवान दुपहर
और लंहगा की तरह घुमती हवा ,
अथवा-
फलता भुनसार
गदरानी दोपहर
पक कर टूटता नारंगी संध्या


पर ग्राम्य जीवन और प्रकृति के प्रति इतना तीव्र आकर्षण होते हुए भी आपका कवि हृदय बाहरी जीवन में निष्क्रिय नही है उसने अपने शहरी परिवेश में भी सुन्दर उपमाओं को खोज लिया है।

भोर कांच के गिलास में
पनी तरह आई
एक दूसरी कविता में....
मैंने इन सभी के हाथों में
आने वाली धूप की
बफयाती किरन प्यालियां
देने की सांत्वना दी


और इस विविध रंगों को अपने में समाहित करते हुए एक नदी कन्ठी सी एक अमर साहित्यक रचना बन पड़ी है इसमें आप स्तरही बौद्धिक चेतना के साथ अपनी बात कह डालते हैं।

जिंदगी से लिपटी
गूंगी धारणाऐं
बहुत टोटकेबाज हैं।
कहीं प्रबल विद्रोह सी है -
फाड़ देंगे खाईयों के मुंह
हम इन झुरमुटों की खाद देकर


पर वह रचनात्मक है ध्वंसात्मक नहीं और यह निश्चित रूप् से एक उपलब्धि है ?
कुछ रचनाओं में चैंकाने वाली संक्षिप्तता और विस्तृत भाव भूमि है जिसमें पाठक का मन आपके कवि मन से कब तादात्म्य स्थापित कर लेता है मालूम नहीं पड़ता, रचनाओं की गंभीरता इसे एक विशिष्टता प्रदान करती है और इसलिए एक विशिष्ट वर्ग ही इसे समझ सकता है सराह सकता है अपना सकता है भाषा जितनी सरल है विचार उतने ही कठिन और गहन-

आशा विश्वासों में
रखा एक सांचा है
जिसमें से आता है
एक नया आदमी


आदमी के भीतर एक और नये आदमी की उपस्थिति पर आपका विश्वास स्वतः सिद्ध हो गया है क्योंकि इस संग्रह में आपका व्यक्त व्यक्तित्व भोर के साथी एवं माटी के बोल के व्यक्त्वि से भिन्न है इन दो रचनाओं में शब्द दृश्य के साधन हैं पर एक नदी कन्ठी सी में शब्द दृश्यों का निर्माण करते हैं और दृश्य भावनाओं और अनुभूतियों को व्यक्त करते हैं।

कुल मिलाकर एक नदी कण्ठी सी बहुत पसंद आई।
बधाई स्वीकारिए मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि आपने मुझे इतनी सुन्दर रचनाऐं पढ़ने का सौभाग्य प्रदान किया और उस पर मेरे विचार जानना चाहे।

चन्द्रशेखर व्यास

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