Sunday 14 April 2013

टूटे हुए लोगों के नगर में-1992 ,समीक्षा

 टूटे हुए लोगों के नगर में

टूटे हुए लोगों के नगर में

काया कला में और आत्मा कविता में तब बदलती है, जब व्यक्ति समाज अथवा युग में बदल जाता है। यह एक शाश्वत सत्य है कि समय बड़ी तेजी से बदल रहा है। कल आज में बदल रहा है और आज बदल रहा है आने वाले कल में ?

वास्तव में आदमी मस्तिक से जीवित है, वहां अततः परिणाम टूटन धुटन और दर्द के ही होंगे। इसलिए कविता कर्म निजी वस्तु है उसका संबंध मनुष्य की भीतरी संवेदनाओं और गृहणशील चेतना से होता है। कविता एक ऐसा संगीत है जा पहिले भीतर रिसता है और फिर उछालें भरने लगता है। इस तरह कविता एकांत संगीत होते  हुए भी मनुष्य समाज से जुड़ी है। इसीलिए सही कविता निजी होते हुए भी सार्वजनिक होती है और वह अप
माधव शुक्ल 
नी संवेदनाओं से जन-मन तक पहुंचती है।

आज की कविता आज के आदमी की टकराहट ही तो है इसीलियसे उसकी अनुभव की अभिव्यक्तियों टूटन-घुटन और दर्द की ही होंगी। कविता को हादसा नहीं है हवाई उड़ान भी नहीं बल्कि एक यथार्थ है। एक परिवेश है। सामंजस्य तलाशती पूरी एक जिन्दगी है। आदमी होने की तकलीफ है। स्वाभिमान की जद्दोजहद है।  स्वयं को और अपने समय की समझ पाने की कोशिश है। जीने की पुरजोर इच्छा है। खुद को खुद के ही सामने ला रखने का साहस है। आदमी से आदमी का सम्वाद है। आपने से ऊपर उठने का प्रयत्न और ऐसा करती भाषा-माध्यम द्वारा आने अनुभव और सोच को व्यक्त करना आज की नयी कविता है। यह समझ और अभिव्यक्तियां मनोज की कविता में सार्थक दिखाई देती हैं। जनमानस में उठता हुआ बबन्डर घूमता यथार्थ का समय चक्र उसके दिल-दिमाग में है। देश समाज में हो रहे विघटन, अलगाव व स्वार्थ पूर्ण धिनौनी राजनीति उत्पीड़न अनास्था, आक्रोश, संघर्ष, विस्फोट, आतंक, बेरोजगारी, धर्मान्धता और अनुशासनही शिक्षा की व्यथा, असंतोष., सहानुभूति उनकी कविता की एक जागरूक मिसाल है। इस तरह टूटे हुए लोगों के नगर में की कवितायें विशेषतः पराजय बोध और मौजूदा अनाचार व्यवस्थाओं-यातनाओं का अहसास कराती हुई निराधार कल्पना या विकृति का परिणाम न होकर वर्तमान के जीवित यथार्थ पर आधारित है। जिनमें युग परिवर्तन की मंजिल तक पहुचने के लिए एक छटपटाहट मिलेगी तभी तो कहीं-कहीं उनके पैने धारदार व्यंग एक नयी दिशा देते हुए दृष्टिगोचर होते हैं जो सहजता लिए हुए नमक की तरह धुलमिलकर नस-नस में असर करते हैं। मुझे विश्वास है कि मनोज के इस संग्रह की कवितायें पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करेंगी और कुछ सोचने-समझने के लिए बाध्य करेंगी।

टूटे हुए लोगों के नगर में पुस्तक में प्रकाशित दो शब्द

No comments: