madhav shukla manoj |
सिकता कण 1952-रचनायें
माधव शुक्ल मनोज
प्रथम कविता संग्रह
दुख भरे व्याकुल हृदय की
तुम सजनि मधु दामिनी हो
मौन मेरी विस्मृति में
तुम सजनि! मन्दाकिनी हो।
तुम सजनि मधु दामिनी हो
मौन मेरी विस्मृति में
तुम सजनि! मन्दाकिनी हो।
1
मैं किसी का चित्र लेकर,
इन दृगों में भर रहा हूं।
कल्पना का लोक मेरा,
हूं खड़ा पथ पर अकेला।
आज आमंत्रित किसी को,
में विजन में कर रहा हूं।
रोज प्रातः और संध्या,
के सलौने देख मेले।
इस धरा पर प्यार लेकर,
खूब पथ पर खेल खेले।
याद! ज्ीवन की कहानी ,
के लिखे थे गीत मैंने।
याद मुझको आ रहे हैं,
पा लिये थे मीत मैंने।
चित्र बनकर छा रहे जो
कर रखी थी प्रीत मैंने।
स्वप्न जीवन के अधूरे,
इस हृदय में धर रहा हूं।
में किसी का चित्र लेकर,
इन दृगों में भर रहा हूं।
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