Thursday 9 May 2013

राष्ट्रीय जनजागरण एकता यात्रा दल

साहित्यकार को जनमानस से जोड़ने वाले कवि मनो


साहित्यकार को जनमानस से जोड़ने वाले कवि मनो
नई  दुनिया 30 अक्टूबर 89 , साक्षात्कार- भोलाराम भारतीय


माधव शुक्ल मनोज हिन्दी और बुंदेली भाषा के जनप्रिय कवि है। उन्होंने रचनाकार को समाज की समस्याओं से रूबरू करके परिवर्तन का वाहक बनाने के लिए अभिवन कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत कवियों का दल गांवों-कस्बों में जाकर वहां के जनमानस को संदेश दे रहा है।

साहित्य कला एवं संस्कृति का न कोई संप्रदाय होता है और न ही कोई जाति। समाज को नई दिशा देने और चेतना जागृत करने में साहित्यकार की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। पिछले कुछ समय से देश में साम्प्रदायिकता रूपी विष बेल ने अपने लतायें फैलाना शुरू कर दी हैं। हालत यह है कि एकता, भाईचारे और विश्वास के हरे-भरे पौधे मुरझाने लगे हैं। तथा लोग एक-दूसरे को अविश्वास की दृष्टि से देखने लगे हैं। ऐसे में साहित्यकार का मन उद्वेलित होना स्वाभाविक है।

राष्ट्रीय एकता कायम रखने के लिए बुंदेली एवं हिन्दी के इस लोकप्रिय कवि ने अभिनव राष्ट्रीय मौलिक कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की। वर्ष 1988 में सागर नगर के कवियों, शायरों, गायकों, वक्ताओं, पत्रकारों, व कलाकारों को एकता यात्रा दल के रूप् में संगठित किया गया। दल के सदस्यों ने सागर जिले के लगभग 50 ग्रामों में समर्पित भाव से भाईचारे की भावनाऐं उजागर करने तथा जनमानस को प्रेरित करने का संकल्प लिया।

श्री मनोज का कहना है कि उन्होंने यह कार्य एक नेता की तरह नहीं, बल्कि एक निःस्वार्थ जनसेवा की भावना से किया है, तभी इस कार्य को राजनीति से परे एक भावनात्मक एवं रचनात्मक कार्य की संज्ञा दी गई हे। उनहोंने एकता यात्रा दल के सभी दलों के लोगों को एकता बंधुतव तथा देश प्रेम में अमन-चैन की बात करने के लिए आमंत्रित किया है।

इस राष्ट्रीय एकता यात्रा दल का पहला कवि सम्मेलन वर्ष 1988 के प्रथम दिवस में ग्राम , 'सुरखी' में हुआ। इसके बाद श्री मनोज के नेतृत्व में योजनानुसार अन्य गांवों, कस्बों में कवि सम्मेलन आयोजित किए गए।

श्री शुक्ल ने ग्रामीण अंचलों में ही कवि सम्मेलन आयोजित करने के औचित्य की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान समय में साम्प्रदायिक तनाव उपद्रव हिंसा की भयावहता बढ़ रही है और विभिन्न सम्प्रदायों में एक दूसरे से भयभीत होने की भावना प्रबल हो रही है।

यह स्थिति हमारी राष्ट्रीयता व सद्भावना को कमजोर बना रही है। गांवों में बसे लोगों का धार्मिक अंधविश्वासों की जमीन में जकड़े होना इसका मुख्य कारण है।  इसके अलावा राष्ट्रीय भावना को मजबूती देने वाले विचार भी उन तक नहीं पहुंच पाते हैं। इस खालीपन को दूर करने हेतु गांवों और कस्बों में जाकर राष्ट्रीय एकता सद्भावना कायम करने के लिए प्रयास करना जरूरी हो जाता है। एक कवि होने के नाते मैंने कवि सम्मेलनों के माध्यम से जनजागृति लाने का प्रयास किया है।

कवि श्री माधव शुक्ल मनोज ने बताया कि कवि सम्मेलन के पूर्व गांव के सरपंच और पंचों से सम्पर्क करना ही पड़ता है। उन्हें अपने दल का उद्देश्य बताकर कवि सम्मेलन के आयोजन के लिए रजामंद करने के बाद उनकी ही सुविधानुसार तिथि तय करना पड़ती है।

कवि सम्मेलनों में पढ़ी जाने वाली कविताओं के बारे में श्री मनोज ने कहा कि हमने विशेष रूप् से ओजस्वी कविताओं के माध्यम से ही प्रयास किया है कि व्यक्ति राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़े, सामाजिक कुरीतियों को त्यागे। साथ ही सभी को समाज के प्रति अपने कर्तव्यें का एहसास कराने व प्रत्येक-छोटे-मोटे हिंसक कार्य का समाज और देश पर कैसा प्रभाव पड़ता है यही बताने का प्रयास कविताऑ के जरिये किया जाता है।

श्री शुक्ल नगरीय और ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में किशोर अवस्था के छात्र-छात्राओं के बीच पहुचकर कवि सम्मेलन आयोजित कर रहे है।। इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि एक अध्यापक होने के नाते मैं यह आवश्यक समझता है कि हम उन नए अंकुरों को साम्प्रदायिकता, वर्गभेद की धिनौनी छाप से बचाएं। अनुशासन, जागरूकता, देश-प्रेम, नई चेतना लाने के लिए माध्यमिक एवं हाई स्कूल के लिए छात्र-छात्राओं के बीच पहुंचकर प्रगतिशील राष्ट्रीय भावना की ज्योति प्रज्जवलित की जाए, आज के छात्र-छात्राएं ही कल के कर्णधार होंगे। इस भावना को लेकर नगरीय एवं ग्रामीण स्कूलों में भी दोपहर दो से सायं साढ़े चार बजे तक एकता यात्रा दल द्वारा कवि सम्मेलन आयोजित किए गए हैं।


एकता यात्रा यात्रा दल के कवि सम्मेलनों की खूबी यह है कि  इसमें राजनीतिक एवं सामाजिक दलों लोग सम्मिलित होने हैं। उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताया कि दल के कवि सम्मेलनों में किसी मंत्री, नेता, वक्ता, विधायक, पत्रकार अथवा समाजसेवी को मुख्य अतिथि के रूप् में आमंत्रित किया जाता रहा है। ग्राम संस्था की ओर से अध्यक्ष का चयन होता है। अब तक दिनकर राव दिनकर? श्रीमती अरविंद पाठक कणिका, श्री निर्मल, टीकाराम त्रिपाठी ‘रूद्र’ नवाब दूलहा, यार मुहम्मद ‘ यार’ अखलाक सागरी, देवीसिंह राजपूत, हर्षकुमार हर्ष, शिखरचंद जैन आदि काव्य पाठ कर चुके हैं।

नई  दुनिया 30 अक्टूबर 89 साक्षात्कार, भोलाराम भारतीय

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